तुझें डर किस बात का?
डॉ. मुकुल स. गोडबोले
आंधीयोंसे झगडनेका
जझ़बा तुझमें हैं
दुसरों को देखना छोड
खुदको परखनेका यहीं वक्त हैं |
अपने अंदर झाँक जरा
ब्रम्हांड का भी अर्थ मिलेगा
माना कठीन हैं रास्ता
वैसे, कुछ भी आसान नहीं यहाँ |
जितनी आएगी कठीनाई
मिलेगी सीख उतनी
हार-जीत तो एक क्षण हैं
उसे स्थैर्य मत समझना |
कभी जीत जाओ, तो
उसे परमोच्च आनंद मत समझना
चोटींपें कोई नहीं रह सकता
तुम्हें सदैव हैं चलते जाना |
संकल्प से सिद्धी तक
मन का दृढनिश्चय बढाना
जो भी मिले सहजतासें
उसमें संतुष्ट मत रहना |
यह सफर हैं जैसे एक तपश्चर्या
अंतमें मिलेगा फल सच्चा
सर उठाके चल, ए इंसान
तुझें डर किस बात का?
Comments
Post a Comment